अमा, जल्दी में क्यूँ हो?
तकल्लुफ्फ़ में क्यूँ हो?
ज़रा सांस भर लो,
इतनी हड़बड़ में क्यूँ हो?
यहाँ आए हो तो,
ज़रा आराम कर लो,
ज़रा खटिया बिछाओ, और,
अंगड़ाई ले लो,
अमा, नोश फ़रमाओ
ये टुंडे कबाबी,
ये खाना नवाबी,
वाहिद की बिरयानी,
यहाँ गंज की रौनक है,
नक्खास का बाजार है,
ज़दीद असास (Modern Infrastructure), और,
शाही एहसास है,
यहाँ प्रकाश की कुल्फी है,
चौक की लस्सी है,
चटपटी चाट, और,
ठंडाई भी सस्ती है,
यहाँ
पान में गिलौरी है,
फिजाओं
में शायरी है,
मीर
की मजार ही तो,
आशिकों
की हस्ती है,
यहीं पे मिलेगी,
बारादरी की महफ़िल,
इमामबाड़े की बाओली, और,
पंचमुखी मंदिर,
लखनऊ में आये हो,
नवाबी हो जाओ, भोकाली हो जाओ ,
ज़रा अंगड़ाई ले लो, और,
तान के सो जाओ|
- अभिनव सहाय|
3 comments:
Very nice Abhi.
Very nice Abhi.
good one !!
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